विस्तार : सीक्रेट ऑफ डार्कनेस (भाग : 40)
यद्यपि डार्क लीडर को काफी समय से वीर के इरादों पर संदेह था परन्तु उसे यह अंदेशा न था कि वीर इतनी बड़ी चाल चल देगा। वीर को वाकई बहुत से ऐसे रहस्य मालूम थे जो अंधेरे की गर्त में कोई अन्य न ढूंढ पाया था शायद यही कारण था कि स्वयं नराक्ष उसके चालों को कभी न भांप पाया, उसे हमेशा यही लगता रहा कि वीर यह सब उसके लिए करता था परन्तु सत्य कुछ और था जिसे समझने में आज सबने देरी कर दी थी।
''यदि ग्रेमाक्ष इक्कीस है तो विस्तार भी उसके समक्ष उन्नीस न हो रहा। यह देखकर ही उसे समझ जाना चाहिए था कि इन दोनों को लड़ाने में किसी तीसरे को फायदा जरूर मिलेगा। पर वह वीर ही निकला, मुझे उसकी हरकतों से पहले ही समझ जाना चाहिए था।" डार्क लीडर स्वयं से ही बात कर रहा था, हालांकि इसके बाद भी उसके मुख पर चिंता की रेखाऐं नही उभरी, भला जलते हुए चेहरे पर चिंता की रेखा कैसे बन सकती है। परन्तु डार्क लीडर के हाव-भाव को देखकर लग रहा था कि वह वीर के इस कृत्य से खुश नही है। डार्क लीडर ने कूदकर वीर के चेहरे पर वार करना चाहा, जिसे वीर ने बड़ी ही सरलता से रोक लिया वह पहले से अधिक शक्तिशाली प्रतीत हो रहा था। यह देखकर सुपीरियर लीडर भी भौचक्का रह गया था।
"न न न डार्क लीडर! ये एक दिन की मेहनत नही है जिसे तुम चट कर जाओगे, यह मेरे बहुत लंबे प्रयास का परिणाम है क्योंकि यही मेरे जीवन का उद्देश्य है।" डार्क लीडर को उठाकर दूर फेंकता हुआ वीर बोला।
"तुम्हारे जीवन का उद्देश्य! परन्तु तुम तो नराक्ष के सबसे शक्तिशाली सेवक चुने गए थे?" सुपीरियर लीडर हैरान था, उसे यह सब समझ में नही आ रहा था।
"नराक्ष की सेना में घुसकर, उसका मुख्य प्रतिनिधि बनना तो मेरी योजना का मात्र एक हिस्सा थी सुपीरियर लीडर!" वीर के चेहरे पर धूर्त मुस्कुराहट छाई हुई थी जबकि सुपीरियर लीडर के चेहरे का रंग उड़ा जा रहा था।
"अपने मस्तिष्क पर अधिक जोर न दो सुपीरियर लीडर! इस दुनिया का एक ही रीति है, यहां कोई किसी का नही होता! पर चिंता न करो तुम्हें और अधिक सस्पेंस में नही रखूँगा।" सुपीरियर लीडर के पास आकर वीर ने कहा, डार्क लीडर पुनः वीर की ओर हमला करने बढ़ा परन्तु अचानक ही रुक गया। वीर ने दोनों की ओर टेढ़ी दृष्टि घुमाते हुए कहना प्रारंभ किया।
"सदियों पूर्व जब अंधेरे पर एकक्षत्र शासन के स्थापना के लिए युद्ध हुआ तो उस युद्ध का वास्तविक "मेराण" हुआ, ग्रेमाक्ष ने धोखे से मेराण की हत्या कर दी और इस दुनिया पर आधिपत्य स्थापित कर लिया। मेराण का एक अनुज भी था जो तंत्र विद्याओं का धनी था, वह पूर्णतः मेराण का प्रतिरूप था। वह अपने अग्रज की धोखे से की गई हत्या का प्रतिशोध लिए हुए था, अंधेरे की पूरी दुनिया में सिर्फ मेराण का ही परिवार हुआ करता था। अपने मद में मदमस्त ग्रेमाक्ष ने मेराण की हत्या तो कर दिया परन्तु वह उसके परिवार को भूल चुका था। प्रतिशोध की अग्नि में अंधा हुआ महाबली मेराण का अनुज 'त्रेश' ग्रेमाक्ष से जा टकराया, अपनी तन्त्रशक्तियो से उसने ग्रेमाक्ष को खूब छकाया परन्तु वह जान चुका था कि ग्रेमाक्ष को कोई नही मार सकता, सिवाय ग्रेमाक्ष के या फिर किसी विशुद्ध स्याह उर्जाधारक के। जैसे ही त्रेश को यह भान हुआ वह युद्ध छोड़कर अपने तन्त्रक्षेत्र में जा पहुंचा, जहां उसे मेराण का बिखलता हुआ पुत्र मिला।
उसी समय त्रेश ने संकल्प लिया कि वह उस बालक को इस अंधेरे संसार का स्वामी बनाएगा। उसके द्वारा सिखाये युद्ध-कौशल एवं रणनीतियों को सीखकर वह बालक एक महान योद्धा बनने की ओर अग्रसर हुआ। उसी समय त्रेश ने अचानक ही अपना मन बदल लिया, वह युद्ध प्रत्यक्ष के बजाए अप्रत्यक्ष रूप से करने का पक्षधर हुआ, उसके शिष्य ने भी, जो कि उसका भतीजा और इस दुनिया का उत्तराधिकारी था, हामी भरी। त्रेश ने यह महसूस कर लिया था कि ग्रेमाक्ष दो उर्जाओं के मेल से बना था, बहुत लंबी तंत्र क्रिया के पश्चात त्रेश अपने कार्य में सफल हुआ, ग्रेमाक्ष विखंडित होकर ग्रेमन तथा नराक्ष दो रूप धारण कर चुका था परन्तु इसके साथ ही प्रकृति की शक्ति विभाजित हो गयी, उनके बीच ओमेगा स्तम्भ रूप अकाट्य दीवार खड़ी हो गयी, उन दोनों को आपस में लड़ाकर मारने की योजना असफल हो चुकी थी, क्योंकि बिना किसी विशुद्ध स्याह उर्जा के कोई भी ओमेगा स्तम्भ के उस पार नही जा सकता, और बिना पार जाए, आर-पार की लड़ाई सम्भव नही हो सकती थी। त्रेश अपनी इस असफलता से बहुत अधिक प्रभावित हुआ और उसी वेदी में कूदकर आत्महत्या कर बैठा। परन्तु उसके शिष्य ने अब भी हार न मानी थी, उसे ग्रेमाक्ष से बदला लेना था, अपने पिता का ऋण चुकाना ही था अन्ततः वह लगातार उसी प्रयास में लगा रहा और अचानक एक दिन उसे अविश्वसनीय सफलता हाथ लग गयी। शुद्ध स्याह ऊर्जा की उत्पत्ति का स्त्रोत! 'यदि ग्रेमन और नराक्ष दोनो ये चाहें तो अंधकार को अपने विशुद्ध ऊर्जा का अंश उत्पन्न करना ही पड़ता।' अब कठिनाई यह थी कि ग्रेमन अथवा नराक्ष को जाकर यह बात कैसे बोली जाए। यह कार्य अत्यधिक कठिन अवश्य था परन्तु असम्भव नही। अपने अंदर के प्रतिशोध को दबाकर अपने गुरु एवं काका त्रेश की सिखाई विद्या का प्रयोग कर वह नराक्ष की सेना में पहुंच गया। किसी तरह वह नराक्ष का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहा, उससे प्रभावित होकर नराक्ष ने उसे सुपीरियर आर्मी का लीडर बना दिया। उसकी मंशा से सब अनजान थे परन्तु वह हर रोज उस आग में जलता था, फिर भी अपने अंदर की अग्नि को दबाये रखा और अपने गुरु त्रेश को दिया वचन याद करने लगा 'एक दिन वह इस दुनिया का स्वामी बनकर ही रहेगा।' धीरे-धीरे करके उसने नराक्ष का विश्वास जीत लिया, नराक्ष ने उसको प्रकृति के द्वारा दी गयी शक्तियो के प्रयोग का अधिकार दे दिया। उसने सब कुछ हासिल कर लिया अब उसके मन में एक ही चीज बाकी थी 'प्रतिशोध!"
"वह निश्चय ही तुम थे न वीर? मेराण के पुत्र तुम ही हो!" सुपीरियर लीडर हैरानी से आँख फाड़े उसकी बातें सुनता जा रहा था।
"यानी इसलिए ही तुमने यह सब किया?" डार्क लीडर थोड़े शान्त स्वर में बोला।
"आगे नही जानना चाहोगे कि क्या हुआ?" वीर मुस्कुराते हुए बोला। जिसपर उन दोनों ने अपनी मूक सहमति जताई।
"हाँ वो मैं ही था! अचानक मुझे एक शक्ति का अंश मिला, जो मुझसे मिलती-जुलती हुई लगी, मैं उसे शरीर देकर नराक्ष के समक्ष पेश किया। वाकई वह शक्ति मुझसे ही मिलती जुलती हुई थी, मुझे उससे अनजाना जुड़ाव हो गया, वह मुझे अनुज के समान प्रिय हो चला! वह एक कुशल योद्धा एवं स्याह शक्तियों का प्रयोग करने में दीक्षित था, अन्ततः नराक्ष न उसे सुपीरियर लीडर बना दिया।" वीर सुपीरियर लीडर की ओर देखता हुआ बोला।
"मैं अचानक मुद्दे से भटक गया! जानते हो आगे क्या हुआ? धीरे-धीरे मैंने अपनी योजना को कार्यान्वित करना आरम्भ किया, मैंने स्वयं की वास्तविक गन्ध को नराक्ष से छिपाकर रखा परन्तु वह अपने सर्वश्रेष्ठ होने की धुन में मग्न था इसलिए कभी उसका इस ओर ध्यान नही गया। मैंने उसे ध्यान दिलाया कि ग्रेमन नामक एक जीव है जो इस दुनिया पर अपना राज्य स्थापित करना चाहता है। नराक्ष यह जानकर बहुत हैरान हुआ परन्तु वह चाहकर भी हमला नही कर पाया क्योंकि ओमेगा स्तम्भ को पार नही किया जा सकता था। तब मैंने अपने योजना की अगली चाल चली और उसे विशुद्ध स्याह ऊर्जा के बारे में बताया, उड़ते उड़ते यह खबर ग्रेमन तक भी पहुंच गई। मेरा कार्य बड़ी सरलता से होता जा रहा था, वर्षों बाद 'विस्तार' रूपी शुद्ध ऊर्जा अंश का अवतरण हुआ। अब बस देरी थी तो उसके शरीरी एवं अशरीरी दोनो अंशो को मिलाने की, शरीरी रूप उजाले की दुनिया में पल रहा था जबकि अशरीरी रूप अंधेरे और उजाले के एक छोर पर उसकी प्रतीक्षा में भटकता रहा। जब उसका ध्यान इस ओर न आया तो मैंने देखना चाहा कि आखिर ऐसा क्यों? तब पता चला कि अंधेरे की ही कोई शक्ति ऐसा करने से रोक रही थी, मैंने उस शक्ति के स्त्रोत को ढूंढा तो मेरे हाथ जैसे खजाना लग गया, मुझे त्रयी महाशक्तियों का पता चल गया परन्तु मैंने इस बात को नराक्ष से छुपाकर रखा, न जाने कैसे यह बात भी ग्रेमन को पता चल गई और उसने देवभूमि के महानखण्ड को अग्नि में झोंक दिया। अब चाहे जो हुआ हो मेरा तो बस लाभ ही हो रहा था, विस्तार इस ओर आने को उतावला होने लगा, अब बस उसके उतावलेपन को भड़काना शेष था। मैने चिंता जताते हुए विशुद्ध स्याह उर्जाधारक के बारे में बताया, अब तक वह भूल चुका था कि उसने ही स्याह ऊर्जा के विशुद्ध अंश को धरती लर बुलाया है। ब्रह्मेश का विस्तार ऊर्जा से मिलन हुआ और वह विस्तार बन गया। परन्तु यह शक्ति भी कई नियमों से बंधी हुई थी जिसे मैं काट नही सकता था, परन्तु प्रयत्न करने में क्या बुराई थी। मेरी योजना सफल हुई, नराक्ष और ग्रेमन की सेना आमने सामने थी, खूब तबाही फैलाई गई, उजाले की सृष्टि भी उजड़ने लगी क्योंकि अब ग्रेमन और नराक्ष एक दूसरे के समक्ष एक दूसरे का सिर उतारने को उतावले हो रहे थे। परन्तु फिर विस्तार को अचानक ही उजाले की दुनिया से मोह हो गया उसने स्वयं की बलि देकर युद्ध का परिणाम घोषित हुए बिना अंत कर दिया। भाग्य से मैं ओमेगा स्तम्भ के पास था जिस कारण अचानक ही उजाले की दुनिया में पहुँच गया और इसी समय सुपीरियर लीडर भी ऊर्जा रूप में मेरे पास मौजूद था, मैं उसे कोई शरीर नही दे पा रहा था क्योंकि शरीर होने के बावजूद भी उसकी शक्तियां जागृत नही होती, उजाले की दुनिया में मेरा शरीर भी काफी शक्तिहीन हो चुका था धीरे-धीरे मेरा शरीर इस योग्य हो गया कि रात्रि में उजाले की दुनिया में भी भ्रमण कर सकूँ, फिर मैं सैकड़ो वर्षों तक विस्तार शक्ति धारक के पुनः जन्म लेने का प्रतीक्षा करने लगा। क्योंकि विस्तार शक्ति का धारक विशेष परिस्थिति में ही जन्म ले सकता था, प्रकृति ने इस बार गंगा के पश्चात ब्रह्मपुत्र को चुना था, नियति ने अपना खेल दिखाया और मैंने अपना। उस रात जब राघव, नवजात शिशु को बचाने की जद्दोजहद में लगा हुआ था तब मैंने एक शर्त रखने का बाद उसकी मदद की, और इस प्रकार सुपीरियर लीडर को अमन का शरीर मिला, जिसे समय आने पर मैं जागृत कर उसके अगले कार्य के बारे में निर्देश देता रहा। उसके आगे क्या हुआ तुम्हे तो पता ही है।" वीर सुपीरियर लीडर की ओर देखकर मुस्कुराते हुए बोला।
"परन्तु वीर बार बार एक ही गलती करने का आदि नही है। पिछली बार ग्रेमन और नराक्ष को आपस में लड़वाकर गलती की थी अब इस बार उन्हें एक कर इस भूल को सुधारना था, जिस प्रक्रिया की शुरुआत मैंने विस्तार के हाथों से ही कराया। उसके पश्चात जब हमारे कुछ किये बिना भी मणिभद्र में संकट के बादल मंडराने लगे तब मैं समझ गया कि डार्क लीडर भी बाहर की दुनिया में आ चुका है और डार्क फेयरीज़ या मैत्रा को जागृत करने की कोशिश कर रहा है। इसलिए मैं वेश बदलकर विस्तार के पास गया, उसे उसके माता-पिता की झलक दिखलाकर भावुक किया और फिर पूरी कहानी तोड़-मरोड़कर अपने तरीके से सुना दी ताकि वह डार्क फेयरीज़ से न लड़े और नराक्ष के नियंत्रण में न आये। मैं सबके सामने दिखावा करता रहा कि मुझे विस्तार की मृत्यु चाहिए परन्तु सत्य यह है कि विस्तार जैसी ऊर्जा कभी नष्ट नही होती, मुझे सिर्फ अंधेरे का साम्राज्य चाहिए था। जब विस्तार पुनः नराक्ष के नियंत्रण में चला गया तो मैं घबरा गया परन्तु वह विस्तार द्वारा चली चाल थी, जिसने मेरे चाल को आगे बढ़ाने में मदद की। मैं नराक्ष के सम्मुख जिद करता रहा कि मैं विस्तार को मारना चाहता हूँ परन्तु वास्तविकता में मुझे ग्रेमाक्ष का अंत चाहिए, इसलिए मैंने उन दोनों को जोड़कर एक करने की अंतिम विधि आरम्भ की, परन्तु इसके लिए यह आवश्यक था कि मुझपर किसी का ध्यान न जाये, आखिरकार मुझे सही समय मिल ही गया। तुम्हारे डार्क गार्ड्स विस्तार से टकरा गए, सुपीरियर लीडर तुम्हारी तलाश में निकला और नराक्ष जाकर ग्रेमन को ललकारने लगा, भला इससे स्वर्णिम अवसर कहा मिलता। मैंने अपनी तन्त्रविद्याओं के द्वारा काका तैश के बुने गए विखण्डिम तंत्र को हटाने में सफल हुआ और ऊर्जा रूप में जाकर उन्हें एक कर दिया। यही कारण था कि मैं तुम्हारे वारों का ठीक से प्रत्युत्तर ने दे पा रहा था क्योंकि मेरा आधा ध्यान और ऊर्जा उन्हें एक करने में लगी हुई थी। अब इसके अनेको लाभ हुए, ग्रेमाक्ष अभी भी अपनी पूरी शक्ति को हासिल नही कर पाया है। और विस्तार के हाथों उसका मरना तय है, उसके बाद विस्तार निश्चय ही इतना शक्तिहीन हो जाएगा कि मैं उसे अपना सेवक बनाकर रख सकूँ हाहाहा…! आज मेरे पिता मेराण एवं काका तैश का प्रतिशोध पूरा होगा, अंधेरे के अग्रिम सम्राट का झुककर स्वागत करो डार्क लीडर!" अपनी खुशी को जाहिर करते हुए अंतिम वाक्यांशों पर जोर देते हुए वीर बोला। इस समय उसके चेहरे पर विजयी मुस्कान सजी हुई थी।
डार्क लीडर ने कोई उत्तर नही दिया बल्कि धीमे से मुस्कुरा दिया। वीर उसके इस रहस्यमयी मुस्कान को नही समझ पाया। सुपीरियर लीडर इन दोनों के रहस्यों को समझने के प्रयास में और उलझता जा रहा था।
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"ये तुम्हारी असली दुनिया है ग्रेमाक्ष!" विस्तार, ग्रेमाक्ष के सिर को पकड़कर कंकालों की पहाड़ी पर घसीटता हुआ ले गया।
"तुम मेरा कुछ नही कर सकते हो विस्तार! आह!" दर्द से कराहते हुए ग्रेमाक्ष ने विस्तार को पटकने की कोशिश की।
"तुम्हारी सारी शक्तियां व्यर्थ है! तुम्हारे शासन की इस लालसा में देखो तुम्हारे संसार का क्या हाल हो गया है।" विस्तार, उसे ऊपर ले जाकर छोड़ते हुए कहा, इस समय स्वयं विस्तार भी किसी शैतान से कम नजर न आ रहा था। ग्रेमाक्ष के गिरते ही वह ऊँचा पहाड़ धूल-धुरसित हो गया। परन्तु विस्तार के अपेक्षाओं के विपरीत ग्रेमाक्ष अगले की क्षण उठ खड़ा हुआ।
"ग्रेमाक्ष को तुम जैसे तुच्छ जीव से ज्ञान के उपदेश नही सुनना विस्तार! अब तेरा विस्तार पूर्ण होगा।" ग्रेमाक्ष का सम्पूर्ण शरीर धधकने लगा, उसकी प्रकृति की समस्त शक्तियां जागृत होने लगी थी। विस्तार की आंखे यह देखकर हैरानी से फटी जा रही थी।
क्रमशः….
Seema Priyadarshini sahay
07-Sep-2021 04:10 PM
वाह
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🤫
13-Aug-2021 08:32 AM
नाइस....!!
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